क्लॉसीफाइड केटालॉग कोड की आरम्भिक जानकारी (Preliminaries of Classified Catalogue Code)
क्रियात्मक सूचीकरण से तात्पर्य (Meaning of Practical Cataloguing)
क्रियात्मक सूचीकरण से मुख्य तात्पर्य है सूची की विभिन्न प्रविष्टियों का निर्माण। वैसे इसके अन्तर्गत निम्नांकित प्रक्रियायें आती हैं:-
- जिस ग्रन्थ का सूचीकरण किया जा रहा है उसका विहंगम अध्ययन।
- सूचीकरण स्रोतों से आवश्यक जानकारी प्राप्त करना।
- प्रविष्टियों की जाँच ।
- प्रविष्टियों का विन्यसन।
- संदर्शिकाओं (Guides) का निर्माण।
- सूची अनुरक्षण (Maintenance)।
सूचीकरण के सूचना स्रोत (Sources of Cataloguing)
सूचीकरण हेतु सूचना का मुख्य स्रोत वह समस्त ग्रन्थ या प्रलेख होता है जिसका सूचीकरण किया जा रहा है। रंगनाथन ने इस प्रसंग में एक उपसूत्र का प्रतिपादन भी किया है जिसका नाम आपने निर्धार्यता का उपसूत्र (Canon of Asceriainability) रखा है। इस उपसूत्र के अनुसार किसी भी प्रविष्टि में जो सूचना अंकित की जाये वह आवश्यक रूप से अभिनिश्चित होनी चाहिये। सूचीकरण में निर्धार्यता विशेष रूप से मुखपृष्ठ तथा उसके आस-पास के पृष्ठों (Overflow Pages) तक की सीमित रहती है।
दूसरे शब्दों में सूचीकरण के सूचना के स्रोत निम्नानुसार हैं :
- ग्रन्थ का मुखपृष्ठ (title page) सूचीकरण सूचना का प्रमुख स्रोत है जिसके दो भाग होते हैं – मुखपृष्ठ का अग्र भाग (Recto) और उसका पश्च भाग (Verso)। सूचीकरण हेतु अधिकांश सूचना इसी स्रोत से ली जाती है। इसके अतिरिक्त ग्रंथ के निम्नांकित भागों से भी आवश्यकतानुसार सूचना प्राप्त की जाती है –
- ग्रंथ का आवरण (Cover)
- ग्रन्थ की जिल्द और पीठिका (Spine)
- संक्षिप्त मुखपृष्ठ (Half title page) ग्रंथ माला (Series) सम्बन्धी सूचना प्राप्त करने का प्रामाणिक स्रोत माना जाता है।
- समपर्ण पृष्ठ (Dedication page)
- प्राक्कथन (Foreword)
- प्रस्तावना (Preface)
- विषय सूची (Contents)
- विषय प्रवेश (Introduction)
- मूल पाठ (Text)
- सतत आख्या (Running title)
- परिशिष्ट (Appendix)
- अनुक्रमणिका (Index)
- ग्रन्थसूची (Bibiography)
सूची पत्रक की संरचना (Structure of Catalogue Card) : आजकल अधिकतर ग्रंथालयों में सूची का निर्माण पत्रक स्वरूप में किया जाता, है।
सूची पत्रक का आकार प्रकार और माप अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित है। इसकी लम्बाई 5″ (12.5 से.मी.) और चौड़ाई 3″ (7.5 से.मी.) होती है।
नीचे इसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है
- अग्र रेखा (Leading Line): पत्रक पर प्रथम आड़ी रेखा होती है। सामान्यतः यह रेखा पत्रक के ऊपरी सिरे से 2.5 से.मी. की दूरी पर होती है। इस रेखा पर प्रत्येक प्रविष्टि का अग्रानुच्छेद अंकित किया जाता है और इससे ऊपर कुछ भी अंकित नहीं किया जाता है।
- प्रथम शीर्ष (First Vertical): पत्रक पर प्रथम खड़ी रेखा को प्रथम शीर्ष कहते हैं। यह भी लगभग पत्रक के बायें किनारे से 2.5 सेमी अथवा आठ अक्षरों की दूरी पर होती है। प्रत्येक प्रविष्टि का अग्रानुच्छेद इसी रेखा से आरम्भ होता है। सामान्यतः समस्त प्रविष्टियों के सभी अनुच्छेद की निरन्तरता इसी रेखा से होती है।
- द्वितीय शीर्ष (Second Vertical) प्रथम शीर्ष से 1.2.5 से.मी. अथवा चार अक्षरों की दूरी पर स्थिति द्वितीय खड़ी रेखा को द्वितीय शीर्ष कहते हैं। अग्रानुच्छेद और परिग्रहण संख्या अनुच्छेद के अतिरिक्त सामान्यतः अन्य समस्त अनुच्छेद इसी रेखा से आरम्भ होते हैं। उपरोक्त तीनों रेखायें पत्रक पर लाल स्याही से अंकित की जाती हैं।
- छिद्र (Hole) पत्रक में नीचे की ओर मध्य में 1 से.मी. ऊपर एक छेद होता है। दराज में पत्रकों को स्थिर रखने के लिए एक छड़ का उपयोग किया जाता है जो इन छिद्रों में से गुजरती है।
ग्रन्थालय हस्तलिपि (Library Hand)
सूची पत्रक जितने स्वच्छ आकर्षक और सुस्पष्ट हो उतना ही अच्छा है। अतः उनको टंकित करने की अनुशंसा की जाती है। किन्तु सभी ग्रंथालयों में और हर समय टंकित मशीन अथवा टंकनकर्ता उपलब्ध नहीं होते। अतः पत्रक हाथ से लिखे जाते हैं। ऐसी स्थिति में रंगनाथन के ग्रंथालय हस्तलिपि का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
ग्रंथालय हस्तलिपि से तात्पर्य है- सभी अक्षर, अंक और चिन्ह सुस्पष्ट, सीधे, साफ और एक दूसरे से पृथक-पृथक होने चाहिये। जहां तक संभव हो रोमन लिपि में मुद्रण में उपयोग किये जाने वाले बड़े और छोटे वर्णों (Alphabets) का उपयोग किया जाना चाहिये।
ग्रन्थालय हस्तलिपि का नमूना नीचे दिया जा रहा है।
विराम चिन्हों आदि का उपयोग
- विराम चिन्हों आदि का उपयोग व्याकरण के सामान्य नियमों के अनुसार होता है जब तक की संहिता (Code) में कोई विशिष्ट प्रावधान न हो।
- शब्द के संक्षिप्तिकरण (Abbreviation) की स्थिति में डॉट (.) लगाने की परिपाटी को सीसीसी के अनुसार त्याग दिया गया है।
वर्गीकृत सूची से तात्पर्य (Meaning of Classified Catalogue)
रंगनाथन के अनुसार वर्गीकृत सूची से तात्पर्य ऐसी सूची से है जिसमें कुछ प्रविष्टियाँ संख्या (Number) प्रविष्टियाँ होती हैं और कुछ प्रविष्टियाँ शब्द (Word) प्रविष्टियाँ होती हैं।
अतः वर्गीकृत सूची एक विभागीय सूची होती है। यह दो भाग निम्नानुसार होते हैं :
- वर्गीकृत भाग (Classified part)
- अनुवर्ण भाग (Alphabetical part)
वर्गीकृत भाग मुख्य भाग होता है और इसमें प्रविष्टियाँ वर्गीकृत क्रम (Classified order) से विन्यासित की जाती हैं।
अनुवर्ण भाग वर्गीकृत भाग के पूरक के रूप में कार्य करता है अनुवर्ण भाग को अनुक्रमणिका (Index) भी कह सकते हैं। इसमें प्रविष्टियाँ अनुवर्ण क्रम (Alphabetical order) में विन्यसित रहती हैं। इसका उपयोग मुख्य भाग से वांछित सूचना प्राप्त करने के लिये भी किया जाता है।
रंगनाथन कृत क्लॉसीफाइड केटालॉग कोड के अनुसार प्रविष्टियों का वर्गीकरण प्रविष्टियों और उनकी संरचना (Classification of Entries of CCC and their Structure)
रंगनाथन कृत क्लासीफाइड केटालॉग (= सीसीसी) का उपयोग वर्गीकृत सूची और शब्दकोशीय सूची दोनों के निर्माणार्थ किया जा सकता है। परन्तु इस इकाई में इस संहिता के अनुसार केवल आनुवर्गिक सूची का ही निर्माण निर्धारित है। अतः हम यहां केवल उसी की चर्चा करेंगे। प्रविष्टि को सूची में अन्तिम एकांश लेखा’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
सीसीसी के अनुसार प्रविष्टियाँ निम्नांकित प्रकार की हो सकती हैं : ० प्रविष्टियाँ (Entries)
1 मुख्य प्रविष्टियाँ (Main Entries)
2 इतर प्रविष्टियाँ (Added Entries)
21 अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ (Cross Reference Entries)
22 निर्देशी प्रविष्टियाँ (Index Entries)
23 नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ (Cross Reference Index Entries)
221 वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ (Class Index Entries)
222 ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ (Book Index Entries)
उपर्युक्त प्रविष्टियों में मुख्य प्रविष्टियाँ और अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ संख्या (Number) प्रविष्टियाँ हैं। अतः इनको वर्गीकृत भाग में वर्गक्रम से विन्यसित किया जाता है। शेष प्रविष्टियाँ अर्थात् वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ; ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ और नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ शब्द (Word) प्रविष्टियाँ हैं। अतः इनको अनुवर्ण भाग में वर्णक्रम् में विन्यासित किया जाता है। द्वितीय प्रकार का विभाजन
- विषय प्रविष्टियाँ (Subject Entries): उन प्रविष्टियों को कहते हैं जो उपयोगकर्ता की विषय अभिगम को सन्तुष्ट करती हैं। उपर्युक्त प्रविष्टियों में मुख्य प्रविष्टियाँ, अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ और वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ इसी श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं।
- अविषय प्रविष्टियाँ (Non- Subject Entries): उन प्रविष्टियों को कहते हैं वे उपयोगकर्ता की विषय के अतिरिक्त अन्य अभिगमों अर्थात् लेखक (Author), आख्या (Title), सहकारक (Collaborator) और ग्रंथमाला (Series) को सन्तुष्ट करती हैं। उपर्युक्त प्रविष्टियों में शेष प्रविष्टियाँ अर्थात् ग्रंथ निर्देशी प्रविष्टियाँ और नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ इस श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं।
तृतीय प्रकार का विभाजन - विशिष्ट प्रविष्टियाँ (Specific Entries): उन प्रविष्टियों को कहते हैं जो किसी विशेष से सम्बन्ध रखती हैं। उपर्युक्त प्रविष्टियों में मुख्य प्रविष्टियाँ, अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ और ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियां इसी श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं।
- सामान्य प्रविष्टियाँ (General Entries): उन प्रविष्टियों को कहते हैं जो अनेक ग्रंथो से सम्बन्धित होती हैं। उपर्युक्त प्रविष्टियों में शेष प्रविष्टियों अर्थात् वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ और नामान्तर निर्देशी’ प्रविष्टियाँ इसी श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं।
6.1 मुख्य प्रविष्टि (Main Entry)
मुख्य प्रविष्टि किसी ग्रन्थ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रविष्टि होती है अर्थात् अधिकांश उपयोगकर्ताओं की अभिगम की सम्पूर्ति करती है। रंगनाथन के मतानुसार आजकल सर्वाधिक उपयोगकर्ताओं की रुचि अपने विशिष्ट विषय में होती है। अतः मुख्य प्रविष्टि विषय के अन्तर्गत निर्मित करनी चाहिये। परन्तु इसमें ग्रन्थ का विशिष्ट विषय वर्गीकरण की कृत्रिम भाषा में वर्गाक के रूप में अंकित रहता है। अतः इनको सूची के वर्गीकृत भाग में वर्ग क्रम में विन्यासित किया जाता है। संबंधित ग्रंथ का मुख पृष्ठ तथा आस-पास के पृष्ठ, मुख्य प्रविष्टि की सूचना के प्रमुख स्रोत होते हैं।
मुख्य प्रविष्टि एक विशिष्ट प्रविष्टि होती हैं जो ग्रन्थ के संबंध में अधिकतम सूचना प्रदान करती है। प्रत्येक ग्रन्थ के लिये एक मुख्य प्रविष्टि का निर्माण किया जाता है। इस प्रविष्टि में संकेत (Tracing) के रूप में ग्रंथ से संबन्धित समस्त इतर प्रविष्टियों के बारे में सूचना अंकित रहती है।
सीसीसी के नियमांक MBO के अनुसार, मुख्य प्रविष्टि में निम्नानुसार अनुच्छेद होते हैं : - अग्र अनुच्छेद (Leading Section)
- शीर्षक अनुच्छेद (Heading Section)
- आख्या अनुच्छेद (Title Section)
- टिप्पणी अनुच्छेद (Notes Section)
- परिग्रहण क्रमांक अनुच्छेद (Accession Number Section)
- संकेत अनुच्छेद (Traching Section)
इन अनुच्छेदों में निम्नानुसार सूचना अंकित की जाती है - अग्र अनुच्छेदः इस अनुच्छेद में ग्रंथ का क्रामक अंक (Call Number) अंकित किया जाता है। इसी कारण इसको क्रामक अंक अनुच्छेद भी कहते हैं। इसको अग्र रेखा पर प्रथम शीर्ष से आरम्भ करते हुए लिखना चाहिये। इसको सदैव पेन्सिल से लिखना चाहिये। ग्रंथ का क्रामक अंक, मुखपृष्ठ के पश्च भाग पर अंकित होता है। वहां से लेकर लिखना चाहिये। वर्णांक (Class Number) और ग्रन्थांक (Book Number) के मध्य दो अक्षरों का स्थान छोड़ना चाहिये।
- शीर्षक अनुच्छेदः सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद होता है। इसमें सामान्यतः ग्रन्थ के लेखक का नाम अंकित किया जाता है। लेखक न होने पर नियमानुसार ग्रंथ के सहकारक (Collaborator) का नाम अथवा उसकी आख्या अंकित की जाती है। शीर्षक के चयन (Choice) और उपकल्पन (Rendering) की चर्चा विभिन्न इकाइयों में की जायेगी।
- आख्या अनुच्छेदः इस अनुच्छेद में क्रमशः (1) ग्रंथ की सम्पूर्ण आख्या (II) ग्रंथ का संस्करण, और (III) सहकारक संबंधी सूचना अंकित की जाती है। यह सूचना एक पैराग्राफ में तीन वाक्यों में दी जाती हैं।
- टिप्पणी अनुच्छेदः सीसीसी के अनुसार टिप्पणियाँ निम्नानुसार छः प्रकार की हो सकती हैं।
(i) ग्रंथमाला टिप्पणी (Series note)
(ii) बहु- ग्रंथमाला टिप्पणी (Multiple Series note)
(iii) उद्गृहीत टिप्पणी (Extract note)
(iv) आख्या परिवर्तन टिप्पणी (Change of title note)
(v) उद्ग्रहण टिप्पणी (Extraction note), और
(vi) सम्बद्ध ग्रंथ टिप्पणी (Associated book note)
इन टिप्पणियों की चर्चा विभिन्न इकाइयों में की जायेगी। - परिग्रहण क्रमांक अनुच्छेदः परिग्रहण क्रमांक मुखपृष्ठ के पश्च भाग पर अंकित होता है। वहां से लेकर लिखा जाता है। इसको सबसे निचली रेखा पर प्रथम शीर्ष से आरम्भ करके लिखा जाता है। इसका उद्देश्य प्रशासकीय माना जाता है।
- संकेत अनुच्छेदः इसको मुख्य प्रविष्टि पत्रक के पश्च आग (Back) पर अंकित करने का प्रावधान है। इसको ग्रंथ की इतर प्रविष्टियाँ निर्मित करने के पश्चात् ही अंकित किया जा सकता है क्योंकि इसमें उक्त ग्रंथ की इतर प्रविष्टियाँ संबंधी सूचना अंकित रहती है। इसका उद्देश्य भी प्रशासकीय है अर्थात् आवश्यकता पड़ने पर किसी ग्रन्थ की मुख्य प्रविष्टि खोज कर उसे सम्बन्धित इतर प्रविष्टियों की जानकारी प्राप्त की जा सके।
संकेत अनुच्छेद (Tracing Section)
संकेत अंकित करने के लिये मुख्य प्रविष्टि पत्रक के पश्च भाग (Back) को एक काल्पनिक शीर्ष रेखा के दवारा दो अर्थ भागों में विभाजित मान लिया जाता है। जिनको बाँया
अर्द्ध और दाँया अर्द्ध की संज्ञा दी जाती है। बाँये अर्द्ध भाग में ग्रंथ से संबंधित अन्तर्विषयी प्रविष्टियों के वर्गाक अंकित किये जाते हैं और उनके समक्ष ‘p’ (पृष्ठ), part (भाग), chap (अध्याय), sec (अनुच्छेद) आदि शब्द लिखकर संबंधित संख्यायें अंकित की जाती हैं। प्रत्येक अन्तर्विषयी प्रविष्टि के लिए एक रेखा का उपयोग किया जाता है। इनको वर्गीकृत क्रम में अंकित किया जाता है।
दाँये भाग में क्रमशः वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों, ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियों और नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियों के शीर्षक अंकित किए जाते हैं। वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों का अनुक्रम अंतिम खोज कड़ी से प्रथम खोज कड़ी होता है। ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियों का अनुक्रम लेखक प्रविष्टियाँ, सहकारक प्रविष्टियाँ, आख्या प्रविष्टियाँ और ग्रन्थमाला प्रविष्टियाँ होता है। नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियों का अनुक्रम वैकल्पिक नाम प्रविष्टि, एक शब्द के विभिन्न स्वरुप प्रविष्टि छदमनाम- वास्तविक नाम प्रविष्टि, संपादक ग्रन्थमाला प्रविष्टि और सजातीय-नाम प्रविष्टि होता है।
वर्ग निर्देशी प्रविष्टि का प्रत्येक पद बड़े अक्षर से आरम्भ होता है। ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टि और नामान्तर निर्देशी प्रविष्टि के प्रत्येक शीर्षक का प्रथम शब्द बड़े अक्षर से आरम्भ होता है। इसके अतिरिक्त व्याकरण के समान्य नियमों का पालन किया जाता है। विवरणात्मक पद को रेखांकित किया जाता है, बड़े अक्षर से आरम्भ किया जाता है और इससे पूर्व अर्द्ध विराम (Comma) लगाया जाता है। यदि कोई शीर्षक एक रेखा में नहीं आ पाता है तो नैरन्तर्य अगली रेखाओं में दो अक्षरों का स्थान छोड़कर किया जाता है। प्रत्येक शीर्षक के अन्त में पूर्ण विराम (Full stop) लगाया जाता है।
प्रत्येक प्रकार की निर्देशी प्रविष्टियों के मध्य एक रेखा का रिक्त स्थान छोड़कर उनको समूहों के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।
मुखपृष्ठ
Memories, Dreams, Reflections
by C.G. Jung
Edited by Aneille Jaffe
London Oxford University Press 1963
मुख्य प्रविष्टि और संकेत में सब स्थानों पर क्रामक अंक (Call Number) और वर्गीक पेन्सिल से लिखे जायेंगे।
6.2 इतर प्रविष्टियाँ (Added Entries)
मुख्य प्रविष्टि उपयोगकर्ताओं की मुख्य अभिगम की संपूर्ति करती है। अन्य अभिगमों की संपूर्ति हेतु इतर प्रविष्टियों का निर्माण किया जाता है। रंगनाथन के अनुसार, “मुख्य प्रविष्टि के अतिरिक्त अन्य प्रविष्टियाँ इतर प्रविष्टियाँ कहलातीं हैं। “सीसीसी के अनुसार यह निम्नांकित प्रकारों की होती हैं: - अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ
- निर्देशी प्रविष्टियाँ
- नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ
6.2.1 अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ (Cross Reference Entries)
सीसीसी के नियमांक MJ के अनुसार अन्तर्विषयी प्रविष्टि में निम्नलिखित अनुच्छेद हैं: - अग्र अनुच्छेद (Leading Section)
- द्वितीय अनुच्छेद (Second Section)
- मूल प्रलेख विवरण अनुच्छेद (Locus Section)
(i) ग्रन्थ का क्रामक अंक
(ii) ग्रन्थ की मुख्य प्रविष्टि का शीर्षक
(iii) ग्रन्थ की आख्या, संस्करण सहित और प्राप्ति स्थल जैसे पृष्ठ, अध्याय, भाग आदि।
टिप्पणीः उपर्युक्त तीनों प्रविष्टियाँ अन्तर्विषयी प्रविष्टियाँ हैं। इनमे वर्गाक और क्रमश अंक पेंसिल से लिखे जायेंगे।
6.2.2 निर्देशी प्रविष्टियाँ (Index Entries)
निर्देशी प्रविष्टियाँ दो प्रकार की होती है :-
- वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ (Class Index Entries)
- ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ (Book Index Entries)
6.2.2.1 वर्ग निर्देशी प्रविष्टियाँ (Class Index Entries)
मुख्य प्रविष्टि में ग्रन्थ का विशिष्ट विषय वर्गीकरण की कृत्रिम भाषा में अंकित रहता है। उपयोगकर्ता इसको समझने में असमर्थ रहते हैं। अतः उनके मार्गदर्शन के लिये प्राकृतिक भाषा में विषय प्रविष्टियों का निर्माण किया जाता है। जिनको सीसीसी में वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों का नाम दिया गया है। इनकी व्युत्पत्ति वर्गाक से होती है। इनकी व्युत्पत्ति के लिये रंगनाथन ने एक विधि का प्रतिपादन किया है। जिसको श्रृंखला प्रक्रिया (Chain Procedure) नाम दिया गया है । इस सम्बन्ध में विस्तृत नियम सीसीसी के भाग K में दिये गये हैं, जिनका अध्ययन आपको करना चाहिये। यहाँ उनको संक्षेप में उद्गृहीत किया जा रहा है।
वर्ग निर्देशी प्रविष्टि वह सामान्य इतर शब्द प्रविष्टि है जो वर्ग के नाम से वर्गाक की ओर निर्दिष्ट करती है। मुख्य प्रविष्टि तथा अन्तर्विषयी दोनों के वर्गाकों से श्रृंखला प्रक्रिया द्वारा विषय शीर्षक प्राप्त कर वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों का निर्माण किया जाता है।
6.2.2.1.1 श्रृंखला प्रक्रिया (Chain Procedure)
रंगनाथन ने श्रृंखला प्रक्रिया को परिभाषित करते हुए लिखा है, श्रृंखला प्रक्रिया किसी भी वर्गाक से विषय शब्द प्रविष्टि व्युत्पन्न करने की लगभग एक यांत्रिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में वर्गाक को एक श्रृंखला के रूप में विश्लेषित किया जाता है। कड़ियाँ निम्नांकित प्रकार की होती हैं: - मिथ्या कड़ी (False Link) एक ऐसी कड़ी है जिसका कोई अर्थ नहीं होता है अथवा जिसकी समाप्ति निम्नलिखित से होती है:
i. योजक चिन्ह जैसेः अथवा
ii. दशा सम्बन्ध (Phase relation) का प्रतिनिधित्व करने वाले अंक जैसे Oa ob Oc Od Og पर अथवा अन्तः पक्ष दशा सम्बन्ध (Intra facet phase relation) का प्रतिनिधित्व करने वाले अंक जैसे Oj Ok Om On Or अथवा
iv. अन्तः पंक्ति दशा सम्बन्ध (Intra array phase relation) का प्रतिनिधित्व करने वाले अंक जैसे Ot Ou Ov Ow Oy पर अथवा
V. काल एकल से जो वर्गाक में काल पक्ष में स्वयं में काल पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं और अन्य किसी मूलभूत श्रेणी का प्रतिनिधित्व नहीं करते अर्थात् वे स्थान (Space), ऊर्जा (Energy), पदार्थ (Matter) अथवा व्यक्तित्व (Personality) के रूप में नहीं आते। - अखोज कड़ी (Unsougt Link): ऐसी कड़ी जिसके अन्तर्गत पाठ्य सामग्री उत्पादित होने अथवा पाठकों द्वारा खोजने की सम्भावना न हो।
- खोज कड़ी (Sought Link): उस कड़ी को कहते हैं जो न मिथ्या हो, न विलयित (Fused) और न अखोज हो अर्थात् जिस कड़ी पर पाठकों द्वारा पाठ्य-सामग्री खोजने की सम्भावना हो।
- विलुप्त कड़ी (Missing Link): श्रृंखला में विलुप्त एकल से संबंधित रिक्तता (Gap) वाली कड़ी को विलुप्त कड़ी कहते हैं।
- छद्म कड़ी (Pseudo Link): ऐसी कड़ी को जो ग्रन्थांक (Book Number) के किसी भाग के अंक या अंक समूह द्वारा बनती है, छद्म कड़ी कहते हैं।
6.2.2.1.2 वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों की संरचना वर्ग निर्देशी प्रविष्टि एक विषय प्रविष्टि होती है जिसमें निम्नांकित तीन अनुच्छेद होते हैं: – - अग्रानुच्छेदः इसमें प्रत्येक मुख्य प्रविष्टि और अन्तर्विषयी प्रविष्टि के वर्गाकों से निर्मित श्रृंखलाओं की खोज कड़ियों (Sought links) के अन्तिम अंक के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को प्रथम पद बनाया जाता है। प्रत्येक खोज शीर्षक से एक वर्ग निर्देशी प्रविष्टि का निर्माण होता है। अतः वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों की संख्या खोज शीर्षकों पर निर्भर करती हैं। यदि शीर्षक व्यष्टिकृत (Individualising) नहीं होता तो व्यष्टिकृत करने के लिये प्रसंग के उपसूत्र की सहायता से एक या अधिक ऊपरी खोज कड़ियों के अन्तिम शब्दों से उपशीर्षकों की व्युत्पत्ति की जाती है। प्रत्येक शीर्षक या उपशीर्षक सिवाय इसके कि जब तक प्रशंसात्मक विशेषण (Qualifying adjective) न हों, सामान्यः प्रथमाविभक्ति (Nominative case) में एकाकी संज्ञा होता है। समस्त पद, उपयोग की जा रही वर्गीकरण पद्धति के लिये जाते हैं। यह अनुच्छेद अग्र रेखा पर प्रथम शीर्ष से आरम्भ होता है तथा अनुवर्ती पंक्तियाँ भी प्रथम शीर्ष से आरम्भ होती हैं।
इस प्रकरण में विस्तृत नियम सीसीसी के अध्याय KD और KE में दिये गये हैं जिनका पालन करना चाहिये। - द्वितीय अनुच्छेदः इसमें नियमांक KF2 के अनुसार निम्नलिखित निर्देशक शब्द अंकित किये जाते हैं:
For documents in this Class and its Subdivisions see the classified part of the catalogue under the Class Number
यह अनुच्छेद द्वितीय शीर्ष से आरम्भ होता है और अनुवर्ती पंक्तियाँ प्रथम शीर्ष से आरम्भ होती हैं। अन्य निर्देशक शब्दों की भांति यह निर्देशक शब्द रेखांकित नहीं किये जाते हैं। अन्त में पूर्ण विराम (Full stop) नहीं लगाया जाता। - तृतीय अनुच्छेदः इसमें अग्रानुच्छेद में दिये गये शीर्षक को दर्शाने वाला निर्देशांक (Ondex number) अंकित किया जाता है। इसको द्वितीय अनुच्छेद समाप्त होने वाली पंक्ति में जितना संभव हो सके उतना दाहिनी ओर पेन्सिल से लिखना चाहिये। द्वितीय अनुच्छेद और निदेशाक के मध्य कम से कम चार अक्षरों का स्थान होना चाहिये। यदि पर्याप्त स्थान न हो तो अनुवर्ती पंक्ति पर यथासंभव दाहिनी ओर लिखा जाता है।
टिप्पणी : 1. Psychology और Cognition के अन्तर्गत एक ही बार वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों का निर्माण किया गया है। यह तथ्य विशेष रूप में ज्ञातव्य है क्योंकि ग्रन्थालय में सूची में ऐसा ही करना चाहिये। - निर्देशक शब्द को केवल प्रथम प्रविष्टि में पूर्ण रूप से अंकित किया गया है। शेष में केवल प्रथम दो शब्द और अंतिम दो शब्द अंकित किये गये हैं। आगे भी ऐसा ही किया जायेगा। यह समय और बचाने के लिये किया गया है। वैसे ग्रन्थालय में प्रत्येक प्रविष्टि में इनको पूर्ण रूप से अंकित किया जाता है। वस्तुतः। इनको पत्रकों पर मुद्रित करवा लिया जाता है।
- पत्रकों का आकार स्थान बचाने को छोटा कर दिया गया है और आगे भी ऐसा ही जायेगा। वस्तुतः प्रत्येक पत्रक समान आकार का 12.5 सेमी. और 7.5 से.मी. होता है।
6.2.2.2 ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ (Book Index Entries)
आनुवर्गिक सूची की विशिष्ट सहायक शब्द प्रविष्टि को ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टि कहते हैं। यह मुख्यतः निम्नलिखित चार प्रकार की होती हैं और तदनुसार उपयोगकर्ताओं की अभिगमों की सम्पूर्ति करती हैं:
(i) लेखक / सहलेखक निर्देशी प्रविष्टि
(ii) सहकारक/ सह-सहकारक निर्देशी प्रविष्टि
(iii) आख्या निर्देशी प्रविष्टि
(iv) ग्रन्थमाला निर्देशी प्रविष्टि
ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टि की संरचना
सीसीसी के नियमांक MKO के अनुसार एक ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टि में निम्नानुसार अनुच्छेद होते हैं। सामान्यतः अधिकांश ग्रन्थों की ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियों में प्रथम तीन अनुच्छेदों की ही आवश्यकता होती है:
- अग्रानुच्छेदः अग्ररेखा पर प्रथम शीर्ष से आरम्भ होता है। अनुवर्ती पंक्तियाँ प्रथम शीर्ष से आरम्भ होती है।
- द्वितीय अनुच्छेदः द्वितीय शीर्ष से आरम्भ होता है। ग्रन्थमाला प्रविष्टि में शीर्ष से आरम्भ होता है।
- निर्देशांक (Index number) द्वितीय अनुच्छेद की समाप्ति पर कम से कम चार अक्षरों का स्थान छोड़कर उसी पंक्ति पर यथासम्भव दाहिनी ओर पेन्सिल से लिखा जाता है। समुचित स्थान न होने पर अनुवर्ती पंक्ति में यथासम्भ दाहिनी ओर अंकित किया जाता है।
- टिप्पणी अनुच्छेद यदा-कदा आवश्यक पड़ती है। नमूने की ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ
उपर्युक्त ग्रन्थ के लिये निर्मित की जाने वाली ग्रन्थ निर्देशी प्रविष्टियाँ नीचे प्रस्तुत की जा रही हैं :
लेखक
टिप्पणी. 1. सीसीसी के नियमों के अनुसार आख्या प्रविष्टि निर्मित करने का प्रावधान अपवाद स्वरूप है। जिसकी चर्चा आगे की जायेगी। वस्तुतः इस ग्रन्थ की आख्या प्रविष्टि निर्मित नहीं होगी। यहाँ उसको नमूने के तौर पर समझाने के लिये बनाया गया है।
- यह स्मरण रखना चाहिये कि ग्रंथ की आख्या का शीर्षक के रूप में प्रयुक्त पर प्रथम दो शब्द बड़े अक्षरों में लिखे जाते है।
6.2.3 नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ (Cross Reference Index Entries)
सीसीसी के अनुसार नामान्तर निर्देशी प्रविष्टि एक सामान्य सहायक प्रविष्टि है जो एक शब्द या शब्द समूह से अन्य पर्यायवाची शब्द समूह की ओर निर्दिष्ट करती है। नियमांक LA’3 के अनुसार यह निम्नांकित पांच प्रकार की होती है: - वैकल्पिक नाम प्रविष्टि (Alternative Name Entry)
- शब्द परिवर्ती रूप प्रविष्टि (Variant Form of Word Entry)
- छद्म नाम वास्तविक नाम प्रविष्टि (Pseudonym Real Name Entry)
- ग्रन्थमाला-सम्पादक नाम प्रविष्टि (Editor of Series Entry)
- सजातीय नाम प्रविष्टि (Generic Name Entry)
सामान्यः नामान्तर निर्देशी प्रविष्टि उन शीर्षकों के अन्तर्गत निर्मित होती है जो उक्त ग्रन्थ की वर्ग निर्देशी प्रविष्टियों और ग्रंथ निर्देशी प्रविष्टियों में समाविष्ट नहीं हो सके हैं और उपयोगकर्ताओं द्वारा उनके अन्तर्गत पाठ्यसामग्री खोजने की सम्भावना है। वस्तुतः इनकी निष्पत्ति ग्रंथ निर्देशी प्रविष्टियों से मानी जाती है। इसी कारण इनको द्वितीय क्रम में व्युत्पन्नता की प्रविष्टियाँ (Entries of second order of derivation) कहते हैं।
नामान्तर निर्देशी प्रविष्टि की संरचना
सीसीसी नियमांक LA1 के अनुसार इस प्रविष्टि में निम्नानुसार तीन अनुच्छेद होते हैं: - अग्रानुच्छेदः यह अनुच्छेद अग्र रेखा पर प्रथम शीर्ष से आरम्भ होता है और अनुवर्ती पंक्ति भी प्रथम शीर्ष से आरम्भ होती है। इसमें उस शीर्षक को अंकित किया जाता है जिससे निर्देशित किया गया है।
- द्वितीय अनुच्छेदः यह अनुच्छेद अनुवर्ती रेखा पर द्वितीय शीर्ष से आरम्भ होता है। इसमें आवश्यकतानुसार शब्द See अथवा ‘See also’ अंकित किये जाते हैं जिनको रेखांकित किया जाता है।
- निर्देशित शीर्षक अनुच्छेदः यह अनुच्छेद अनुवर्ती रेखा पर द्वितीय शीर्ष से आरम्भ होता है और अनुवर्ती पंक्ति प्रथम शीर्ष से आरम्भ होती है। इस अनुच्छेद में निर्देशित शीर्षक अंकित किया जाता है।
टिप्पणीः यह विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि इन प्रविष्टियों में ग्रंथ की आख्या और क्रामक अंक (Call Number) अंकित नहीं किये जाते जो ग्रंथ निर्देशी प्रविष्टियों में अवश्य अंकित किये जाते हैं।
नमूने की नामान्तर निर्देशी प्रविष्टि
PHILLIPS
(Richard M), Ed.
See CLASSICS IN PSYCHOLOGY.
टिप्पणीः जैसा कि ऊपर बताया गया है नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ पांच प्रकार की होती हैं। यह उनमें से ग्रन्थमाला-सम्पादक-नाम प्रविष्टि है। अन्य प्रकार की नामान्तर निर्देशी प्रविष्टियाँ सम्बन्धित प्रकरणों में निर्मित करके समझायी जायेगी।