वर्गीकरणः अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं कार्य (Classification: Meaning, Definition, Need and Functions)
वर्गीकरण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Classification)
अर्थ (Meaning)
‘वर्गीकरण’ शब्द अंग्रेजी के Classification शब्द का हिंदी अनुवाद है। Classification शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा शब्द Classis से हुई। इसका अर्थ है वस्तुओं या व्यक्तियों का वर्ग। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले प्राचीन रोम राज्य में किया गया था। उस समय सम्पत्ति, महत्व या वंश की दृष्टि से समाज को मोटे तौर पर छः श्रेणियों या वर्गों (Class) में विभाजित किया जाता था। इन श्रेणियों या वगों के भेद को स्पष्ट करने के लिये ही इस शब्द का प्रयोग किया जाता था।
सामान्यतः वर्ग (Class) शब्द का अर्थ वस्तुओं या पदार्थों के ऐसे समूह से है, जो समान विशेषताओं या गुणों के आधार पर परस्पर मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं, अर्थात् वे गुण वर्ग के प्रत्येक सदस्य में विद्यमान होते हैं। वर्गीकरण शब्द का अर्थ समझने के लिये निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है:
(i) अनेक वस्तुओं या पदार्थों को सामान गुणों के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित करने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया में सामान वस्तुओं को एक साथ एकत्र कर दिया जाता है तथा असमान वस्तुओं को उनसे अलग कर दिया जाता है। अनेक वस्तुओं को किसी एक एक वर्ग में रखते समय सर्वप्रथम हम उनकी पहचान करते हैं। यह पहचान हम उनमें अंतनिर्हित गुणों के सादृश्य के आधार पर करते हैं। वस्तुओं के सादृश्य की जानकारी उनकी विशेषताओं से प्राप्त होती है। एक ऐसी या समान विशेषताओं वाली वस्तुओं को एक वर्ग में सम्मिलित कर लिया जाता है तथा असमान वस्तुओं को अलग कर दिया जाता है।
(ii) वर्गीकरण से हमारा अभिप्राय केवल समान वस्तुओं को एक वर्ग में रखना, अर्थात् केवल वर्ग बनाना, तथा असमान वस्तुओं को अलग करना मात्र ही नहीं है। इसका उद्देश्य समान वस्तुओं के विभिन्न वर्गों को किसी निश्चित क्रम में रखना भी है। अर्थात् वर्गीकरण में सभी वर्गों को क्रमशः प्रथम स्थान, दूसरे स्थान व तीसरे स्थान पर रखने की प्रक्रिया भी भी अपनाई जाती है। विभिन्न वर्गों में क्रम निर्धारण किसी उद्देश्य, अभिरुचि, सिद्धान्तों तथा नियमों के अंतर्गत किया जाता है। उदाहरणार्थ, मान लीजिये किसी कक्षा के छात्रों को उनके कद के अनुसार विभिन्न वर्गों में विभाजित करना है। उनका कद 50 से 65 इंच कद वालों का, दूसरा वर्ग 51 इंच कद वालों का, तीसरा वर्ग 52 इंच कद वालों का इस प्रकार 50 से 65 इंच कद वाले छात्रों के 16 वर्ग बन सकते हैं। वर्गीकरण की प्रक्रिया में इन वर्गों की किसी क्रम में रखना आवश्यक है। इन्हें उद्देश्य या अभिरुचि के अनुसार या तो कद के बढ़ते हुए क्रम में रखा जा सकता है या कद के घटते हुए क्रम में। इस प्रकार कोई भी तरीका, नियम या सिद्धांत अपना कर ही इन्हें क्रमबद्ध करना आवश्यक है।
(iii) जैसा कि डब्ल्यू.सी.बी. सेयर्स ने लिखा है “वर्गीकरण एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम वस्तुओं की समानता व भिन्नता की पहचान करते हैं, उनके सम्बन्धों का पता लगाते हैं, तथा उन सम्बन्धों के आधार पर उनके वर्ग बनाते हैं”, अर्थात्, वर्गीकरण करते समय हम विभिन्न वस्तुओं को उनकी समानता की मात्रा के अनुसार व्यवस्थित करते हैं तथा उनकी भिन्नता की मात्रा के अनुसार ही उनको अलग करते हैं। समानता से हमारा अभिप्राय उस गुण व लक्ष्य से है जो वस्तुओं में निहित होता है तथा उन्हें एक साथ जोड़ता है।
इस प्रकार समानता वर्गीकरण को निर्धारित करती है। इस समानता को हम वर्गीकरण के क्षेत्र में विशेषता के नाम से जानते हैं। किन्तु यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि जब हम यह कहते हैं कि वस्तुओं में समानता है, तो इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि वे हर प्रकार से समान हैं। दो या अधिक वस्तुओं में पूर्ण समानता या समरूपता नहीं पाई जाती है। वर्ग केवल ऐसी वस्तुओं का समूह होता है जो कुछ अंश तक समान है या जो कुछ सामान्य गुणों से युक्त है, जैसे, रीढ़ की हड्डी वाले पशुओं में रीढ़ की हड्डी का होना सामान्य विशेषता है।
(iv) वस्तुओं में दो प्रकार की विशेषतायें हो सकती हैं (1) प्राकृतिक तथा (2) कृत्रिम। प्राकृतिक विशेषता उस लक्षण को कहते हैं जो वस्तुओं की बनावट व क्रिया में निहित है। कृत्रिम विशेषता बाहरी लक्षणों पर
आधारित होती है। प्राकृतिक विशेषता एक जन्म-जात गुणों को व्यक्त करती है। मनमाने ढंग पर चयन की गई विशेषता या उपलक्षण को जो उनके जन्मजात गुण से सीधा सम्बन्ध नहीं रखती है, कृत्रिम विशेषता कहते हैं। यदि वखों के बण्डलों का विभाजन उनके निर्माण में लाये गए गये पदार्थों के आधार पर जैसे, रेशमी, सूती व ऊनी कपड़ा कहा जाता है तो यह वर्गीकरण प्राकृतिक विशेषता के आधार पर किया गया है। यदि इन्हें बण्डलों को रंग, आकार अथवा बारीकी के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है तो यह कृत्रिम विशेषता के आधार पर किया जाता है।
(v) वर्गीकरण के लिये जिस विशेषता का प्रयोग किया जाये वह वर्गीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के अनुरूप होनी चाहिए। उदाहरण स्वरूप यदि पुस्तकों का वर्गीकरण का करने का उद्देश्य उन्हें सजावट के लिये रखना है तो उन्हें उनके आकार या रंग के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि वर्गीकरण का उद्देश्य उन पुस्तकों को जिल्दसाजी के लिये भेजना है तो उन्हें चमड़े की जिल्द, कपड़े की जिल्द आदि के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है। परन्तु यदि वर्गीकरण का उद्देश्य उन्हें उपयोग के लिये पुस्तकालय में रखना हो तो उन्हें उनकी विषय वस्तु के अनुसार व्यवस्थित या वर्गीकृत किया जाता है। इसके साथ ही विशेषता का प्रयोग होना चाहिए। किसी एक विशेषता के अनुसार वर्गों का निर्माण समाप्त करने के बाद ही किसी दूसरी विशेषता के अनुसार वर्गों का निर्माण करना चाहिए। अर्थात् किसी एक विशेषता का प्रयोग करने के बाद जो वर्ग बनते हैं उनका उप-विभाजन किसी अन्य विशेषता के आधार पर किया जा सकता है। जैसे, सर्वप्रथम हम वस्त्रों के, उनमें प्रयोग लाये गये पदार्थ की विशेषता के आधार पर, वर्ग बना सकते हैं- सूती कपड़ा, रेशमी कपड़ा। इसके बाद प्रत्येक वर्ग को रंग की विशेषता के आधार पर पुनः विभाजित किया जा सकता है हरा सूती कपड़ा, लाल सूती कपड़ा आदि।
(vi) वर्गीकरण की प्रक्रिया में अधिक विस्तार (Greater extension) तथा कम गहनता (Lesser intension) वाले वर्ग से प्रारम्भ कर हम अधिक गहनता (Greater intension) तथा कम विस्तार (Lesser extension) वाले उप वर्गों की ओर बढ़ते हैं। अतः वर्गीकरण का तात्पर्य केवल विभाजन ही नहीं बल्कि उपविभाजन भी हैं। उपविभाजन का अर्थ है: एक बड़े वर्ग को आवश्यकता अनुसार उपवर्गों में बाँटना। इस प्रक्रिया में वर्गों की एक ऐसी श्रृंखला (Chain) बनती है जिसमें ऊपर वाला वर्ग अपने नीचे वाले वर्ग से विस्तार अधिक तथा अर्थ की गहनता में कम होता है, अथवा नीचे वाला वर्ग ऊपर वाले वर्ग से विस्तार में कम तथा गहनता में अधिक होता है। इसकी प्रस्तुति = साहित्य, भारतीय साहित्य, हिन्दी साहित्य, उपन्यास, प्रेमचन्द ,गोदान
2.2 वर्गीकरण की परिभाषा (Definition of Classification)
वर्गीकरण शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जा सकता है (1) सामान्य वर्गीकरण के अर्थ में, तथा (2) पुस्तकालय वर्गीकरण के अर्थ में।
सामान्य वर्गीकरण में हम विचारों व वस्तुओं को केवल किसी सुव्यवस्थित क्रम में क्रमबद्ध करते हैं। सामान्य वर्गीकरण की परिभाषायें विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत की है: डब्ल्यू.सी.बी. सेयर्स के अनुसार “वर्गीकरण वस्तुओं को उनकी विशेषताओं के आधार पर पहचानने, उनके वर्ग बनाने तथा इन वर्गों को किसी क्रम में व्यस्थित करने की मानसिक प्रक्रिया है।” मारगरेट मान के अनुसार “समान वस्तुओं को एक साथ रखना, अर्थात् वस्तुओं को उनकी समानता व भिन्नता के अनुसार व्यवस्थित करना ही वर्गीकरण है।” ए., ब्रोडफिल्ड के अनुसार किसी सिद्धांत या अवधारणा या उद्देश्य या अभिरुचि या इनके किसी संयोजन के अनुसार किसी क्रम में व्यवस्थित वर्गों की व्यवस्था या श्रेणी को वर्गीकरण कहते हैं।”
पुस्तकालय वर्गीकरण का सम्बन्ध पुस्तकों व प्रलेखों से होता है। तथा उनको अत्यधिक सहायक व स्थायी क्रम में व्यवस्थित करना ही इसका उद्देश्य है।
पुस्तकालय वर्गीकरण की कुछ प्रचलित परिभाषायें निम्नलिखित हैं:
(1) “पुस्तकों का वर्गीकरण वस्तुतः ज्ञान का वर्गीकरण है जिसमें पुस्तकों का भौतिक स्वरूप के आधार पर आवश्यक समायोजन कर दिया जाता है।”- मारगटेन मान
(ii) “पुस्तक के विशिष्ट विषय के नाम को क्रम सूचक अंकों की अधिमान्य कृत्रिम भाषा में अनुवाद करना, तथा उसी विशिष्ट विषय से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों को एक अन्य क्रम सूचक अंकों के समूह के द्वारा, जो पुस्तक की विषय वस्तु के अलावा पुस्तक की अन्य विशेषताओं को प्रस्तुत करते हैं, विशिष्टता प्रदान करना पुस्तकालय वर्गीकरण कहलाता है।” एस.आर. रंगनाथन
(iii) “निधानियों पर पुस्तकों एवं अन्य (अध्ययन) सामग्री को अथवा सूची एवं अनुक्रमणिका की प्रविष्टियों को विषय के अनुसार ऐसे ढंग से, जो अध्ययन करने वालों अथवा किसी निश्चित ज्ञान का पता लगाने वालों के लिये अत्यधिक उपयोगी हो, वर्गीकृत क्रम में व्यवस्थित करना पुस्तकालय वर्गीकरण कहलाता है।”डब्ल्यू.सी.बी. सेयर्स
इन परिभाषाओं के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि पुस्तकालय वर्गीकरण में हम पहले पुस्तकों में निहित विषयवस्तु का वर्गीकरण करते हैं। इसके बाद एक ही विषयवस्तु वाली अनेक पुस्तकों को वैक्तिकता प्रदान करने के लिये उनकी अन्य विशेषताओं, जैसे प्रकाशन वर्ष, विवरण की भाषा, विवरण का स्वरूप आदि के आधार पर एक अन्य क्रम सूचक संख्या प्रदान करते हैं। तदानुसार पुस्तक के विषय का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्णांकों को (Class Number) तथा पुस्तकों की वैक्तिकता प्रदान करने वाले क्रम सूचक अंकों को ग्रन्थांक (Book Number) कहते हैं। वर्णांक तथा ग्रंथांक को मिलाने से क्रामक अंक (Call Number) बनता है। इसे क्रामक
अंक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसकी सहायता से पुस्तकों को फलकों पर से बुलाया या प्राप्त किया जाता है। जैसे, X72 (वर्णांक), 152N72 (ग्रंथांक) तथा दोनों को मिलाकर ‘क्रामक अंक’ बनता है।
2.3 विकास (Development)
पुस्तकालय वर्गीकरण की उत्त्पति उस समय से हुई जबकि मनुष्य ने पुस्तकों का संग्रह करना प्रारम्भ किया। प्रत्येक पुस्तक संग्रह करने वाला पुस्तकों की किसी सुव्यवस्थित क्रम में रखता था। वह अपनी रुचि व सुविधा के अनुसार उनकों व्यवस्थित करना था तथा उनका उपयोग करता था। किन्तु पुस्तकालय वर्गीकरण का वास्तविक प्रादुर्भाव पुस्तकालयों की स्थापना के साथ ही हुआ है। प्रत्येक पाठक समय नष्ट किये बिना अपनी पुस्तक प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करने लगा। प्रारम्भ में तो पुस्तकों की संख्या अधिक नहीं थी। किन्तु मुद्रण के आविष्कार के बाद पुस्तकों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो गई तथा पाठक अपने अभीष्ट विषय से सम्बंधित सभी पुस्तकों को एक स्थान पर व्यवस्थित क्रम में चाहने लगे। इस प्रकार पुस्तकालयों में विषयानुसार वर्गीकरण को महत्व दिया जाने लगा।
प्रारंभ में तो परम्परा के अनुसार वर्गीकरण की आवश्यकता का अनुभव पुस्तकालयों में फलकों पर पुस्तकों की क्रमबद्ध व्यवस्था कायम रखने के लिये तथा फलकों (Shelves) पर उनके निश्चित स्थान का पता
लगाने के लिये किया गया था। इस व्यवस्था में पुस्तकों को विषयों के लगभग पारस्परिक संबंधों के आधार पर व्यवस्थित कर दिया जाता था। उस समय वर्गीकरण का सूचना- पुनः प्राप्ति के साधन के रूप में प्रयोग में लाये जाने पर बल नहीं दिया जाता था। इसे केवल एक प्रशासनिक उपकरण के रूप में माना जाता था। किन्तु आधुनिक काल में पुस्तकालय वर्गीकरण को केवल पुस्तकों को क्रमबद्ध करने की यांत्रिक व्यवस्था ही नहीं माना जाता, अपितु उसे सूचना- पुन:र्प्राप्ति व प्रलेखन के क्षेत्र का एक आधारभूत अंग माना जाता है।
3.
वर्गीकरण की आवश्यकता व उद्देश्य (Aims and Need of Classification)
पुस्तकालय का प्रमुख कार्य पाठकों की रुचि तथा आवश्यकता के अनुरूप अध्ययन सामग्री का संग्रह करना और उसको सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित करना है, तथा आवश्यकता पड़ने पर उसको तुरंत पाठकों को उपलब्ध कराना है। अतः पुस्तकालय वर्गीकरण पुस्तकों व प्रलेखों को व्यवस्थित क्रम में रखने के लिये नितान्त आवश्यक है ताकि पाठक अपनी अध्ययन सामग्री तुरन्त प्राप्त कर सकें।
डॉ. एस.आर. रंगनाथन के अनुसार निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भी पुस्तकालय में वर्गीकरण आवश्यक है :
(क) पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तक की पाठक द्वारा मांग की जाने पर उसका स्थान तुरन्त निर्धारित किया जा सके। जब पुस्तक पुस्तकालय को वापस लौटाई जाये तो, उसको निधानियों पर उसको निर्धारित स्थान (ख)
पर तुरन्त पुनः व्यवस्थित किया जा सके।
(ग) जब कोई नवीन पुस्तक पुस्तकालय में प्राप्त हो तो, उसे उसी विषय की अन्य पुस्तकों के बीच उचित स्थान प्राप्त हो सके।
(घ)जब किसी नवीन विषय पर कोई पुस्तक पहली बार पुस्तकालय में प्राप्त हो तो उसे निधानियों पर विद्यमान उससे सम्बंधित अन्य विषयों के साथ उन विषयों से उसके संबंधों की मात्रा के अनुसार स्थान मिला सके।
इस प्रकार निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वर्गीकरण अत्यन्त आवश्यक है: (1) पुस्तकों को सहायक अनुक्रम में रखने की प्रक्रिया को यन्त्रवत बनाने के लिये, (2) उपयोग के बाद लौटाई गई पुस्तकों को ठीक स्थान पर वापस रखने के कार्य को यन्त्रवत बनाने में सहायता प्रदान करने के लिये; एवं (3) पुस्तकालय में नवीन पुस्तक आने पर अन्य पुस्तकों के साथ उसका अत्यन्त सहायक स्थान निश्चित करने के लिये वर्गीकरण बहुत आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त, पुस्तकालय विज्ञान के प्रथम, द्वितीय तृतीय व चतुर्थ सूत्र की मांग को पूरा करने के लिये पुस्तकालय वर्गीकरण आवश्यक है। अर्थात्, यदि पुस्तकालय में पुस्तकें वर्गीकृत व्यवस्था में क्रमबद्ध होंगी तो उनका अधिक से अधिक उपयोग बढ़ेगा और प्रथम सूत्र का लक्ष्य पूरा होगा। पुस्तकें वर्गीकृत क्रम में व्यवस्थित होंगी तो प्रत्येक पाठक को अपने अभीष्ट विषय की पुस्तकें सह सम्बंधित क्रम में एक साथ प्राप्त हो जायेंगी और द्वितीय सूत्र का लक्ष्य पूरा हो जायेगा। तथा यदि पुस्तकें विभिन्न विषयों के पारस्परिक संबंधों के अनुसार व्यवस्थित होंगी तो पाठक के समक्ष सभी सह सम्बंधित विषय एक साथ पस्तुत हो जायेंगे और इस प्रकार तृतीय सूत्र की मांग के अनुसार प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिलने की संभावनायें बढ़ जायेंगी। इसके साथ ही यदि पुस्तक संग्रह वर्गीकृत क्रम में व्यवस्थित है और उपयुक्त मार्गदर्शक उपकरणों की व्यवस्था है तो पाठक एवं पुस्तकालय कर्मचारी अपना समय व्यर्थ बर्बाद किये बिना ही अभीष्ट पुस्तक प्राप्त कर लेगा और इस प्रकार चतुर्थ सूत्र की मांग पूरी हो जायेगी। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भी पुस्तकालय में वर्गीकरण की आवश्यकता है:
(क) अध्ययन सामग्री को पाठकों व पुस्तकालयों कर्मचारियों के लिये अत्यधिक सुविधाजनक क्रम में व्यवस्थित करने के लियेः
(ख) प्रभावकारी संदर्भ सेवा प्रदान करने के लिये:
(ग) पुस्तकों में निहित सूचना के स्थान का पता लगाने में अधिकतम सहायता पहुँचाने के लिये;
(घ) अव्यवस्था में व्यवस्था प्रदान करने के लिये तथा किसी विषय पर उपलब्ध पुस्तकों का व्यापक
दृश्य पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये; बहु- आयामी (अनेक दिशाओं में फैले हुए) ज्ञान को एक सीधी पंक्ति में पुस्तकों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिये। (ङ)
ई.सी. रिचर्डसन के मतानुसार “पुस्तकों का संग्रह उपयोगार्थ किया जाता है और उपयोगार्थ ही उनकी व्यवस्था की जाती है, तथा पुस्तकालय वर्गीकरण का उद्देश्य भी इस उपयोग को गतिशील बनाता है।”
- वर्गीकरण के कार्य (Functions of Classification)
सामान्य रूप से पुस्तकालयों में वर्गीकरण के निम्नलिखित कार्य हैं:
- अध्ययन सामग्री को सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित करना- वर्गीकरण निधानियों पर पुस्तकों को इस प्रकार से व्यवस्थित करता है कि पाठक के विषय से प्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित तथा उस विषय से निकट से सम्बंधित सभी पुस्तकें एक साथ सहायक अनुक्रम में प्राप्त हो जाती है तथा वह अनुक्रम ही उसे अपने अभीष्ट विषय तक पहुँचाने में सहायक होता है।
- पुस्तक संग्रह में विभिन्न वर्गों की सबलता (अर्थात् उस वर्ग से सम्बंधित पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की संख्या) तथा निर्बलता या कमी को स्पष्टतया दर्शाना- वर्गीकृत व्यवस्था में
पुस्तकालयाध्यक्ष को यह आसानी से पता लग जाता है कि किस विषय या वर्ग की पुस्तकें पुस्तकालय में पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है तथा किस विषय या वर्ग की पुस्तकों की संख्या अपर्याप्त है। इस स्थिति का ज्ञान होने पर पुस्तकालयाध्यक्ष को सभी विषयों की पुस्तकों का संतुलित प्रतिनिधि संकलन करने में सहायता मिलती है। अर्थात् इससे पुस्तकालयाध्यक्ष को अपने पुस्तक संग्रह के लिये योजनाबद्ध तरीके से पुस्तक चयन करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही वर्गीकरण उसे अपने पुस्तक संग्रह से ऐसी पुस्तकों को बाहर निकलने में भी सहायता देता है जो या तो अप्रचलित हो गई है या जिनके नवीन संस्करण पुस्तकालय में प्राप्त हो चुके हैं। अर्थात् उसे पुस्तक संग्रह की छंटनी करने में भी वर्गीकरण में सहायता मिलाती है।
पुस्तक संग्रह का प्रभावकारी व स्पष्ट मार्गदर्शन करना वर्गीकरण की सहायता से विभिन्न विषयों या वर्गों से सम्बंधित पुस्तकों के स्थान तथा उनकी स्थिति का पता लगाने में सहायता मिलती है। वर्गीकरण की सहायता से अनेक प्रकार के मार्गदर्शक बनाकर पाठकों का मार्गदर्शक बनाकर पाठकों का मार्गदर्शन किया जा सकता है ताकि वे इन मार्गदर्शकों की सहायता से पुस्तक संग्रह का उपयोग कर सकें।
पुस्तक प्रदर्शन में सहायता देना पुस्तकालय में समय-समय पर, जैसे राष्ट्रीय पर्वो के अवसर पर, महापुरुषों की जयंती के अवसर पर, देश-विदेश की महत्वपूर्ण समस्याओं व घटनाचक्रों से सम्बंधित विषयों पर, पुस्तक प्रदर्शनियां आयोजित करना आवश्यक होता है। यह पुस्तकालय विस्तृत सेवा का एक अंग है। कभी-कभी किसी विषय में अस्थायी रूप से सार्वजनिक रुचि उत्पन्न हो जाती है और इस रूचि के अनुरूप अच्छी पुस्तकों का प्रदर्शन करना पड़ता है। कभी-कभी पाठकों में अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिये पुस्तकालयाध्यक्ष किसी प्रकरण से सम्बंधित पुस्तकों के प्रति पाठकों को आकर्षित करना चाहता है और उन्हें निधानियों से बाहर निकाल कर प्रदर्शित करता है। कभी-कभी वह उपेक्षित पुस्तकों का उपयोग बढ़ाने के लिये भी पुस्तकों का प्रदर्शन करता है। यदि पुस्तकालय का पुस्तक संग्रह वर्गीकृत क्रम में व्यवस्थित है तो वह इन सभी प्रकार के पुस्तक प्रदर्शनों को प्रभावशाली ढंग से व मितव्यता से आयोजित कर सकता है, क्योंकि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये पुस्तकें विशाल पुस्तक संग्रह से आसानी से निकली जा सकती है और प्रदर्शन फलकों पर उन्हें तुरन्त प्रदर्शित किया जा सकता है। यदि पुस्तक संग्रह वर्गीकृत नहीं है तो इस कार्य को पूरा करने में बहुत अधिक समय नष्ट करना पड़ेगा।
विषयानुसार आँकड़ें एकत्र करने में सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष को समय-समय पर अपने उच्च अधिकारियों की जानकारी के लिये और उन्हें पुस्तक-संग्रह की प्रगति से अवगत करने के लिये पुस्तक- संग्रह के निर्माण के लिये आर्थिक अनुदान प्राप्त करने के लिये पुस्तकों के आंकड़े विषयानुसार एकत्र करने पड़ते हैं। यदि संग्रह वर्गीकृत है तो वह पुस्तकालय सूची में वर्गीकृत अनुक्रम में व्यवस्थित सूची पत्रकों की सहायता से इस प्रकार के आँकड़ें तुरन्त एकत्रित कर सकता है।
विषयानुसार तदर्थ ग्रन्थसूचियाँ बनाने में सहायक कभी-कभी पाठक या शोध छात्र या प्रशासनिक अधिकारी या अन्य विशिष्ट व्यक्ति किसी विशिष्ट विषय या प्रकरण से सम्बंधित पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की सूचियाँ बनाने का पुस्तकालयाध्यक्ष से आग्रह करते हैं यदि पुस्तकालय का पुस्तक संग्रह वर्गीकृत क्रम में है तो वह इस प्रकार की तदर्थ ग्रन्थसूचियाँ बनाकर सम्बंधित व्यक्ति को तुरन्त प्रदान कर सकता है। अर्थात् पुस्तकालय सूची के वर्गीकृत भाग की सहायता से इस प्रकार की ग्रन्थसूचियों का आसानी से निर्माण किया जा सकता है।
7.
संदर्भ सेवा व सूचना पुनः प्राप्ति में सहायता प्रदान करना संदर्भ सेवा प्रदान करते समय अथवा सूचना की पुर्नप्राप्ति करते समय पुस्तकालयाध्यक्ष या सूचना अधिकारी को पाठकों के प्रश्नों का विश्लेषण करना पड़ता है। कभी कभी पाठक अपनी मांग स्पष्ट रूप से व्यक्त भी नहीं कर पाते। वर्गीकरण की सहायता से वह पाठकों के प्रश्नों का विश्लेषण करता है और पाठकों के स्पष्ट विषय के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त कर लेता है।
ज्ञान के समस्त क्षेत्रों को उनके पारस्परिक संबंधों के अनुरूप प्रदर्शित करना ज्ञान का क्षेत्र अनन्त है। ज्ञान के क्षेत्र के विभिन्न विचार या विषय एक दूसरे से अनेक प्रकार से सम्बंधित है। कुछ विषय एक दूसरे से निकटतया सम्बंधित है। कुछ विषय आपस में कुछ दूर का संबंध रखते हैं। कुछ विषय आपस में किसी भी प्रकार से सम्बंधित नहीं होते। वर्गीकरण ज्ञान के समस्त क्षेत्र को इस प्रकार से व्यवस्थित करता है कि एक दूसरे से सम्बंधित विषय एक साथ व्यवस्थित हो जाते हैं तथा दूर का संबंध रखने वाले विषय कुछ दूरी पर व्यवस्थित हो जाते हैं। इस प्रकार वर्गीकरण वर्गीकृत वस्तुओं में मौलिक संबंध स्थापित करता है और पाठकों को सुविधा प्रदान करता है।
पाठकों के समय व उनकी शक्ति को सुरक्षित रखना यदि पुस्तकालय में पुस्तकें अस्त-व्यस्त ढंग से रखी हुई है तो पाठक को अपनी अभीष्ट अध्ययन सामग्री प्राप्त करने में अपने समय व अपनी शक्ति को व्यर्थ में बरबाद करना पड़ता है और वह अपने कार्य में पूरी सफलता भी प्राप्त नहीं कर सकेगा। किन्तु यदि पुस्तकालय में पुस्तकें वर्गीकृत क्रम में व्यवस्थित है तो वह अपनी अध्ययन सामग्री तुरन्त प्राप्त कर लेगा और इस प्रकार उसके समय व उसकी शक्ति की बचत हो जायेगी।
पुस्तकालय सहयोग में सहायक यदि सभी पुस्तकालय एक ही वर्गीकरण पद्धति को अपनाकर पुस्तकों का वर्गीकरण करते हैं तो स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पुस्तकालय सहयोग में सफलता मिल जाती है। किसी पुस्तकालय द्वारा बनाई गई अध्ययन सामग्री सूचियाँ दूसरे पुस्तकालयों के पाठकों के लिये सहायक सिद्ध हो सकती है। इस प्रकार पुस्तकों के उपयोग के क्षेत्र में सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
- सारांश (Summary)
अध्ययन सामग्री का अधिक से अधिक उपयोग बढ़ाना पुस्तकालय का मुख्य लक्ष्य है। वर्गीकरण अध्ययन सामग्री के उपयोग को सरल व प्रभावशाली बनाता है। वर्गीकरण शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Classis (क्लासिस) से हुई है।
वस्तुओं को विभिन्न वर्गों में विभाजित करने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया में समान वस्तुओं को एक साथ एक वर्ग में रख दिया जाता है तथा असमान वस्तुओं को अलग कर दिया जाता है। समानता व असमानता की जानकारी वस्तुओं में निहित विशेषताओं के द्वारा प्राप्त होती है। विशेषतायें दो प्रकार की होती है प्राकृतिक व कृत्रिमा जिस भी विशेषता का प्रयोग किया जावे वह वर्गीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये परमावश्यक होनी चाहिए। किन्तु वस्तुओं को वर्गों में विभाजित करते समय एक बार में केवल एक ही विशेषता का प्रयोग करना चाहिए। वर्गीकरण का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है सामान्य वर्गीकरण व पुस्तकालय वर्गीकरण के अर्थ में। सामान्य वर्गीकरण में हम विचारों व वस्तुओं को केवल सुव्यवस्थित क्रम में क्रमबद्ध करते हैं किन्तु पुस्तकालय वर्गीकरण का संबंध पुस्तकों व प्रलेखों से होता है। पुस्तकालय वर्गीकरण में पुस्तक की विषय –
वस्तु के अलावा उसकी अन्य विशेषताओं, जैसे भाषा व प्रकाशन वर्ष को भी क्रम सूचक संख्या प्रदान की जाती है।
पुस्तकालय वर्गीकरण केवल निधानियों पर पुस्तकों की क्रमबद्ध व्यवस्था कायम रखने के लिये ही प्रयोग में नहीं लाया जाता अपितु आजकल उसका सूचना पुनः प्राप्ति के साधन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
पुस्तकालय विज्ञान के प्रथम, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ सूत्रों की मांग को पूरा करने के लिये भी वर्गीकरण आवश्यक है। निधानियों पर पुस्तकों की व्यवस्था को यन्त्रवत बनाने के लिये भी वर्गीकरण आवश्यक है। पुस्तकों को सहायक अनुक्रम में व्यवस्थित रखने के लिये, पुस्तक-संग्रह की सबलता व निर्बलता की जानकारी देने के लिये, संतुलित पुस्तक संग्रह के निर्माण में सहायता देने के लिये, पुस्तक-प्रदर्शन को सफल बनाने के लिये, विषयानुसार आंकड़े एकत्र करने में सहायता पहुँचने के लिये, तदर्थ ग्रन्थसूचियाँ बनाने के कार्य को सरल बनाने के लिये, पाठकों के समय व उनकी शक्ति के अपव्यय को रोकने के लिये, पुस्तकालय सहयोग को सफल बनाने के लिये वर्गीकरण परमावश्यक है।
इसलिए डब्ल्यू.सी. बरविक सेयर्स ने ठीक ही कहा है कि “पुस्तकालय की आधारशिला पुस्तकें है तथा पुस्तकालयाध्यक्षता (Librarianship) की आधारशिला वर्गीकरण है”।
- अभ्यासार्थ प्रश्न (Practice Questions)
(अ ) अति लघुउत्तरीय प्रश्न
वर्गीकरण को किस भाषा के नाम से जाना जाता है? 2.
- ग्रंथांक क्या है?
- किस भाषा के शब्द Classis से क्लासीफिकेशन शब्द की उत्पत्ति हुई है?
- 5. क्रामक अंक के घटकों की संख्या बताइये।
- पुस्तकालय वर्गीकरण के कोई दो कार्य बताइए।
- वर्गांक क्या है?
पुस्तकालय की आधारशिला पुस्तकें हैं तथा पुस्तकालयाध्यक्षता की आधारशिला वर्गीकरण है। यह
कथन किसका है?
(ब) लघुउत्तरीय प्रश्न
अध्ययन सामग्री की खोज में वर्गीकरण किस प्रकार सहायता करता है? स्पष्ट कीजिये।
वर्गीकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए? 2.
सामान्य वर्गीकरण तथा पुस्तकालय वर्गीकरण का अन्तर बताइए।
वर्गीकरण की प्राकृतिक विशेषताओं व कृत्रिम विशेषताओं का अन्तर बताइए। 4.
1.
3.
5.
वर्गीकरण की आवश्यकता व उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
- वर्गीकरण के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिये।
(स) दीर्घउत्तरीय प्रश्न
- वर्गीकरण को परिभाषित कीजिये। इसकी आवश्यकता एवं उद्धेश्यों का वर्णन कीजिये।
- पुस्तकालय की आधारशिला पुस्तकें है तथा पुस्तकालयाध्यक्षता की आधारशिला वर्गीकरण है। व्याख्या कीजिये तथा वर्गीकरण की पुस्तकालय में आवश्यकता बताइये।
- पारिभाषिक शब्दावली (Glossary)
- वर्गीकरण (Classification) : वर्गीकरण वस्तुओं को उनकी विशेषताओं के आधार पर पहचानने, उनके वर्ग बनाने तथा इन वर्गों को किसी क्रम में व्यवस्थित करने की मानसिक प्रक्रिया है।
- वर्गीकरण पद्धति (Classification Scheme): वर्गीकरण की कोई विशिष्ट पद्धति, जैसे ड्युई की दशमलव वर्गीकरण पद्धति, रंगनाथन की द्विबिंदु वर्गीकरण पद्धति।
- पुस्तकालय वर्गीकरण (Library Classification) : पुस्तकालय में पुस्तकों को उनकी विशेषताओं के आधार पर पहचानने, उनके वर्ग बनाने तथा इन वर्गों को किसी क्रम में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया।
- वर्ग (Class) : सामन्यतः वर्ग (Class) शब्द का अर्थ वस्तुओं या पदार्थों के ऐसे समूह से है, जो सामान विशेषताओं या गुणों के आधार पर परस्पर मिलते-जुलते हैं, अर्थात् वे गुण वर्ग के प्रत्येक सदस्य में विद्यमान होते हैं।
- वर्णांक (Class Number) : वर्गीकरण पद्धति में प्रलेख को दी गई वह संख्या जो पुस्तकालय शेल्फ पर विषयानुसार उनका स्थान निर्धारित करती है।
- पुस्तक अंक/ ग्रंथांक (Book Number) : वर्ण, संख्या एवं प्रतीकों के संयोग से बना ऐसा अंकन जो समान वर्ग संख्या हो।
- संकलन अंक/ संग्रहांक (Collection Number) की पुस्तकों को व्यष्टिकृत करता : ऐसी संख्या व प्रतीक जो मुख्य संग्रह के अतिरिक्त अन्य संग्रह का संकेत करे।
- वर्गीकृत व्यवस्थापन (Classified Arrangement) : प्रलेख अथवा प्रविष्टियों का वह क्रम जो किसी वर्गीकरण पद्धति के अनुसार निश्चित किया गया हो।