भारत शासन अधिनियम, 1919 (माण्टेग्यू-चैम्सफोर्ड सुधार) (Government of India Act, 1919)
‘माण्टेग्यू-चैम्सफोर्ड सुधार’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि दोनों क्रमशः तत्कालीन भारत सचिव तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल थे। 20 अगस्त, 1917 को मोण्टेग्यू द्वारा घोषणा की गई जिसका उद्देश्य प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था। इस अधिनियम में सर्वप्रथम ‘उत्तरदायी शासन’ शब्द का स्पष्ट प्रयोग किया गया था। इस अधिनियम में उद्देशिका, 47 धाराएँ तथा दो अनुसूचियाँ थीं।
विशेषताएँ
प्रान्तों में द्वैध शासन (Dyarchy) :- भारत शासन अधिनियम, 1919 से द्वैध शासन (Dyarchy) के प्रावधान पर ब्रिटिश विचारक लियोनेल कार्टिस (Lionel George Curtis) के ‘डायर्की’ सम्बन्धी विचारों का प्रभाव था। कार्टिस ब्रिटिश साम्राज्यीय संघवाद (British Empire Federalism) की वकालत करता था।
• प्रान्तों के लिए प्रस्तावित द्वैध-शासन प्रणाली 1 अप्रैल, 1921 को आरम्भ की गई जो 1 अप्रैल, 1937 तक लागू रही।
प्रान्तों में द्वैध शासन (Dyarchy) तथा आंशिक उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। इसके अन्तर्गत प्रान्तीय विषयों को दो भागों में बाँटा गया-
(i) आरक्षित विषय ( Reserved Subjects)-आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपनी परिषद् की सहायता से करता था तथा परिषद् विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं होती थी। जैसे-कानून एवं व्यवस्था, भू-राजस्व, वित्त, प्रशासन, उद्योग, कृषि, खनिज संसाधन आदि।
(ii) हस्तांतरित विषय (Transferred Subjects). हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन गवर्नर मंत्रियों की सहायता से करता था जो विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
भारत शासन अधिनियम, 1919 की धारा 10 के तहत प्रान्तीय “विधायिकाओं को कानून बनाने का अधिकार दिया गया किन्तु इसी धारा (10) तथा धारा 11 और 12 में उसकी सीमाएँ भी निश्चित कर दी गयीं। गवर्नर और गवर्नर-जनरल को कुछ स्वविवेकीय शक्तियाँ जिसे आरक्षित विषय (reserved subject) कहा जाता है, प्रदान की गयीं।
भारत शासन अधिनियम, 1919 की धारा 17 में यह प्रावधान था कि भारतीय विधानसभा गवर्नर-जनरल और दो सदनों- ‘राज्य परिषद्’ (Council of State) तथा विधान सभा (Leg- islative Assembly) से मिलकर बनेगी।
1919 के अधिनियम की धारा 18 में उल्लेख किया गया कि (i) राज्य परिषद् में अधिक से अधिक 60 सदस्य हो सकते थे। वे सांविधिक नियमों के अनुसार निर्वाचित या मनोनीत होते थे। उनमें अधिक से अधिक 20 सदस्य सरकारी हो सकते थे। (ii) गवर्नर-जनरल सदस्यों में से ही किसी एक को उसका अध्यक्ष (President) नियुक्त करता था, तथा (iii) गवर्नर- जनरल को राज्य परिषद को सम्बोधित करने का अधिकार था, इसके लिए वह सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकता था।
अधिनियम की धारा 19 के अनुसार (i) विधानसभा की सदस्य संख्या अधिकतम 140 तय की थी (बाद में बढ़ाई गयी)। इनमें से 100 निर्वाचित सदस्य, 26 मनोनीत सरकारी सदस्य और शेष गैर सरकारी मनोनीत सदस्य। (ii) सदस्यों की विभिन्न श्रेणियों का अनुपात भी बदला जा सकता था। लेकिन, इसमें यह शर्त थी कि कुल संख्या के कम से कम 5/7 सदस्य निर्वाचित होंगे और शेष के कम से कम एक-तिहाई सदस्य गैर-सरकारी होंगे। (iii) गवर्नर-जनरल को सदन को संबोधित करने का अधिकार था।
अधिनियम की धारा 20 के अनुसार गवर्नर-जनरल विधानसभा द्वारा अपने में से ही चुने गये (Choose) सदस्य को विधानसभा का अध्यक्ष (President) नियुक्त करता था।
अधिनियम की धारा 21 के अनुसार राज्य परिषद् की अवधि पाँच वर्ष और विधानसभा की तीन वर्ष थी। • ज्ञात रहे 1919 के अधिनियम के तहत पहली बार 1920 में निर्वाचन हुये और पहली केन्द्रीय विधानसभा का गठन 1 फरवरी, 1921 को हुआ। 1919 के अधिनियम के तहत 1920, 1923, 1926, 1930, 1934 और 1945 में निर्वाचन हुये। कुल छः बार केन्द्रीय विधानसभाओं का गठन हुआ
1919 के अधिनियम के तहत गठित विधानसभा 1921 अस्तित्व में आई। उसके 145 सदस्य थे। इनमें 104 निर्वाचित सदस्य थे। (52 सामान्य निर्वाचकों द्वारा, 30 मुस्लिम मतदाताओं द्वारा, 9 यूरोपीय मतदाताओं द्वारा, 7 जमींदारों, 4 व्यापारियों द्वारा और 2 सिक्खों द्वारा) । 41 सदस्य नामांकित (26 सरकारी और 15 गैर-सरकारी) सदस्य थे।
- इसी तरह, केन्द्रीय विधान परिषद् के दूसरे सदन राज्य परिषद के कुल 60 सदस्यों में से 27 नामांकित और 33 निर्वाचित (16 गैर मुस्लिम, 11 मुस्लिम, 1 सिक्ख, 2 गैर साम्प्रदायिक, 3 यूरोपीय शामिल थे। इसका गठन 1921, 1926, 1930, 1936 में हुआ।
- नवम्बर, 1920 में केन्द्रीय विधान परिषद् के दोनों सदनों के निर्वाचन के पश्चात् 9 फरवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट ने नई विधायिका का उद्घाटन किया। गवर्नर जनरल ने हाउस ऑफ कामन्स के एक सदस्य सर फ्रेडरिक व्हाइट को 4 वर्ष के लिए सभा का अध्यक्ष नियुक्त किया। उसी दिन सच्चिदानन्द सिन्हा को सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया
ज्ञात रहे केन्द्रीय विधानसभा के पहले भारतीय अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल (1925) थे और अन्तिम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर थे । - अलेक्जेण्डर मुडीमैन को राज्य परिषद् का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। • राज्य परिषद् 14 अगस्त, 1947 को केन्द्रीय विधानसभा की भाँति भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के परिणामस्वरूप भंग हो गयी थी।
- सम्पत्ति तथा शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया तथा जिनकी आय 10 हजार रुपये वार्षिक थी, वही मत दे सकता था।
- साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करते हुए सिक्खों, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों तथा यूरोपियों के लिए भी पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था की गई। यद्यपि मोण्टेग्यू चेम्सफोर्ड ने साम्प्रदायिक निर्वाचक मण्डलों को एक खेदजनक आवश्यकता माना था। • इस अधिनियम द्वारा लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त की स्थापना की गई। सिविल सेवकों की भर्ती के लिए एक केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया जिसका गठन 1926 में किया गया। • पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया तथा राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया गया। अधिनियम द्वारा महिलाओं को मताधिकार प्रदान नहीं किया गया था।
- 10 वर्ष पश्चात् एक वैधानिक आयोग (Royal Commis- sion) के गठन का प्रावधान किया गया जो 1919 के अधिनियम की समीक्षा करेगा। साइमन कमीशन इसी का परिणाम था। • केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के बीच प्रशासन के समस्त विषयों का दो भागों में विभाजन किया गया जो भारत में संघात्मक व्यवस्था के निर्माण की दिशा में प्रथम प्रयास था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय शासन अधिनियम, 1919 को ‘निराशाजनक तथा असंतोषप्रद’ की संज्ञा दी।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1919 के सुधारों को ‘बिना सूरज का सवेरा’ बताया है।
सुभाषचन्द्र बोस के अनुसार इस अधिनियम ने जनता के लिए नवीन बंधन गढ़ दिये